29 August 2023

संस्कृत और संस्कृति

#संस्कृत भाषा और संस्कृति का गहरा सम्बंध रहा है। नदियाँ और पहाड़ भाषा तथा संस्कृति का विकास करने में बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं। सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारे ही हुआ और पहाड़ों के शुद्ध और नैसर्गिक वातावरण में ऋषियों, मुनियों ने अपने आश्रम बनाए। मध्य प्रदेश में स्थित दो पहाड़ हैं- सतपुड़ा और विंध्याचल। दोनों के मध्य बहती है नर्मदा नदी, जिन्हें रेवा भी कहते है।
विंध्य घाटी कितनी आदिम जातियों का निवास स्थल रहा है, सुप्रसिद्ध पत्रकार और लेखक आलोक मेहता के अनुसार-
“नर्मदा घाटी और विंध्य का परिसर आदिम जीवन की आधारभूमि रहा है। नर्मदा अंचल की प्रमुख आदिम जातियाँ गोंड, बैगा, भील, भिलाली, कोल, कोरक, परधान, मड़िया, भूमिका, कीर, सौर आदि प्रसिद्ध हैं। प्राचीन साहित्य में नर्मदा के साथ सर्वाधिक संबंधित शवर जाति का उल्लेख देखने को मिलता है। वास्तव में, एक आदिम जाति विकसित होकर अलग घाटियों और श्रेणियों में रहने के कारण अनेक रूपों में पहचानी जाने लगी। इस दृष्टि से नर्मदा घाटी और विंध्य क्षेत्र आदिम जीवन की आधारभूमि रही है। मैदानी संस्कृति के संपर्क में आकर अनेक जातियों ने अपना स्थान और कर्म बदल लिया। ये कसबों और शहरों में बसते चले गए। विकास का यह क्रम लगातार जारी है।”
-(आलोक मेहता, नर्मदा आए कहाँ से जाए कहाँ) 
सतपुड़ा और विंध्याचल पर अनेक ऋषि-मुनि आश्रम बनाकर रहा करते थे। ये ऋषि-मुनि वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते थे तथा एक प्रकार के वैज्ञानिक थे। विद्या के केन्द्र यहाँ थे जो आश्रमों के रूप में ही थे, जिनमें बड़ी संख्या में विद्यार्थी रहकर विद्या-अध्ययन किया करते थे।
संस्कृत भाषा का व्याकरण इन्हीं पहाड़ों पर स्थिति आश्रमों में ही लिखा गया है। संस्कृत के माहेश्वर सूत्र, जो कि एक प्रकार की कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग ही है, जिस पर संस्कृत भाषा का विशाल भवन टिका हुआ है, वह उसकी नींव में है। यदि हम इन माहेश्वर सूत्रों को समझ लें तो संस्कृत भाषा से तो जुड़ेंगे ही भारत की संस्कृति को भी ठीक से समझ सकेंगे।

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