08 May 2005

आमुख

नर्मदा नदी के पावन तट पर स्थित होशंगाबाद का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है । यहाँ की आदमगढ़ की पहाड़िया पर अनादिकाल में उकेरे गए शैलचित्र आदि मानव की उपस्थिति के जीवन्त दस्तावेज़ हैं । साहित्य के क्षेत्र में भी होशंगाबाद अग्रणी रहा है । पं.माखनलाल चतुर्वेदी, भवानी प्रसाद मिश्र, हरिशंकर परसाई

ने अपनी लेखनी से होशंगाबाद को गौरवान्वित किया है । नर्मदा तीरे काव्य संकलन होशंगाबाद के कुछ उत्साही कवियों की कविताओं का संकलन है । इस संकलन में जो कविताएँ प्रकाशित की जा रही हैं उनके विषय में यह दावा तो नहीं किया जा सकता कि ये कविताएँ होशंगाबाद की प्रतिनिधि कविताएँ हैं लेकिन यह अवश्य कहा जा सकता है कि अब तक किसी नगर से हिन्दी कविताओं का इंटरनेट पर प्रकाशित होने वाला यह पहला काव्य संकलन है । इस दृष्टि से यह संकलन महत्वपूर्ण है और ऍतिहासिक भी । कम्प्यूटर के युग में हिन्दी कविता के लिए यह भी एक सशक्त माध्यम है, और नर्मदा तीरे इस पथ में साहस पूर्ण और प्रेरणास्पद कदम है। संकलन में अभी कवियों की संख्या कम है परन्तु यह संख्या बढ़ती रहेगी। यदि इस संकलन से प्रेरणा लेकर हिन्दी साहित्य के कुछ संकलन विभिन्न नगरों से इंटरनेट पर आने शुरू हुए तो यह हिन्दी भाषा और साहित्य के लिए एक बड़ी और वैश्विक उपलब्धि होगी।

07 May 2005

नर्मदा तीरे काव्य संकलन के कवि

* भास्कर तैलंग gg

* नर्मदा प्रसाद मालवीय gg

* सुभाष यादव
gg

* तेजेश्वर मिश्र gg

* डॉ॰ शरद जैन gg

* गिरि मोहन गुरु gg

* रमेशकुमार भद्रावले gg


* महेश मूलचंदानी gg

* हेमन्त रिछारिया
gg

* जया नर्गिस gg

* श्वेता गोस्वामी gg

* सन्तोष व्यास gg

* संजय कुमार सराठे gg




* क्वचिदन्यतोऽपि ggg

* मधु का प्याला - जयदेव वशिष्ठ

कुछ जालघर

* श्री कृष्ण सरल

* राजभाषा संवाद

* शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

* महेश मूलचंदानी

* यशपाल सिंह रवि

फोटो समाचार

प्रतिक्रिया/ समाचार gg

यह हार एक विराम है

यह हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है
तिल–तिल मिटूँगा, पर–
दया की भीख मैं लूँगा नहीं
वरदान माँगूंगा नहीं ।

-शिवमंगल सिंह सुमन

प्रवेश में

अतिथि कवि

तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना
कम्पित कम्पित,पुलकित पुलकित,

परछा‌ईं मेरी से चित्रित,
रहने दो रज का मंजु मुकुर,
इस बिन श्रृंगार-सदन सूना !
तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना ।
सपने औ' स्मित,जिसमें अंकित,
सुख दुख के डोरों से निर्मित;
अपनेपन की अवगुणठन बिन
मेरा अपलक आनन सूना !
तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना ।
जिनका चुम्बनचौंकाता मन,
बेसुधपन में भरता जीवन,
भूलों के सूलों बिन नूतन,
उर का कुसुमित उपवन सूना !
तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना ।
दृग-पुलिनों परहिम से मृदुतर ,
करूणा की लहरों में बह कर,
जो आ जाते मोती, उन बिन,
नवनिधियोंमय जीवन सूना !
तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना ।
जिसका रोदन,जिसकी किलकन,
मुखरित कर देते सूनापन,
इन मिलन-विरह-शिशु‌ओं के बिन
विस्तृत जग का आँगन सूना !
तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना ।

- महादेवी वर्मा

06 May 2005

मेरी पसंद की कविताएँ

  • कुछ कविताएँ जिन्हें पढ़ना किसी गहन अनुभूति के क्षण विशेष को जीने का जीवंत अहसास है ।